कृषक नेतराम साहू ने बताया कि गोमूत्र से बनने वाले उत्पाद के लिए लगभग 500 से एक हजार रुपये की अनुमानित लागत खर्च आता है। कृषक ने बताया कि वह दो सालों से गोमूत्र से बने उत्पाद का उपयोग अपने खेतों में कर रहे हैं। यह देखकर आस पास के गांव एवं क्षेत्र के अन्य कृषक भी उनसे प्रेरणा ले रहे हैं और प्रेरित होकर अपने खेतों में भी इसका उपयोग करना चाहते हैं जिससे उन्हे कम लागत में अधिक एवं शुद्ध फसल प्राप्त हो सके। किसान नेमकुमार ने बताया कि गोमूत्र से उत्पादन हेतु उपयोग में लायी जाने वाली सामग्री एवं विधि बहुत ही सरल है। इसके लिए एक किलोग्राम गाय का गोबर और एक लीटर गौमूत्र को मिलाकर तीन से चार दिन छोड़ दिया जाता है। जिसके बाद उसमें 100 ग्राम घी, एक लीटर दूध व 100 ग्राम दही को मिलाकर सुबह और शाम घोला जाता है। इसके पश्चात यह उत्पाद 10 दिन में पंचगव्य बनकर तैयार हो जाता है।
किसान नेमकुमार ने कहा कि गोधन न्याय योजना के तहत गोबर खरीदी की सफलता ही गोमूत्र खरीदी का आधार बनी है। गोमूत्र से कीट नियंत्रक उत्पाद, जीवामृत, ग्रोथ प्रमोटर, पंचगव्य, घनजीवामृत बनाए जा रहे हैं। इसके पीछे मकसद यह भी है कि खाद्यान्न उत्पादन की विषाक्तता को कम करने के साथ ही खेती की लागत को भी कम करना है। उन्होंने बताया कि खेती में अंधाधुंध रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के उपयोग से खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता खत्म हो रही है भूमि की उर्वरा शक्ति घट रही है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि गौमूत्र कीटनाशक, रासायनिक कीटनाशक का बेहतर और सस्ता विकल्प है। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, रासायनिक कीटनाशक से कई गुना अधिक होती है। खेतों में इसके छिड़काव से कीटों के नियंत्रण में मदद मिलती है। पत्ती खाने वाले, फलछेदन एवं तनाछेदक कीटों के प्रति गौमूत्र कीटनाशक का उपयोग ज्यादा प्रभावकारी है।