Home व्यापार

​भारतीय रेल इतिहास का वो काला दिन, पुल तोड़कर नदी में समा गए ट्रेन के 7 डिब्बे, चली गई थी 800 लोगों की जान

68
0

नई दिल्ली: ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम हुए कोरोमंडल एक्सप्रेस रेल हादसे (Coromandel Express derailed) कई लोगों की जान चली गई। मालगाड़ी के टकराने के बाद ट्रेन के सात डिब्बे पटरी से उतर गए । इस रेल हादसे ने एक बार फिर से उस ट्रेन एक्सीडेंट (Train Accident) की यादों को ताजा कर दिया, जब ट्रेन की 7 बोगियां पुल तोड़कर नदी में समा गई थी। चाहकर भी हम उस हादसे को भूल नहीं पाते। भारतीय रेल के 170 साल पुराने इतिहास में ये रेल हादसे काले धब्बे की तरह हैं, जिन्हें चाहकर भी मिटायानहीं जा सकता है।

​6 जून 1981 का वो काला दिन

6 जून 1981 को हुए इस रेल हादसे ने केवल देश ही नहीं पूरी दुनिया को झकझोर दिया था। भारतीय रेल (Indian Railway) के इतिहास में इसे सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा करार दिया गया है। ओडिशा में हुए ट्रेन एक्सीडेंट ने इस एक बार फिर से इस हादसे की याद ताजा कर दिया है। 6 जून 1981 की वो शाम…9 डिब्बों के साथ पैसेंजर ट्रेन 416DN मानसी से सहरसा की ओर जा रही थी। उस वक्त खगड़िया से सहरसा जाने वाली ये एकलौती ट्रेन थी, इसलिए भीड़ का अंदाजा आप लगा सकते हैं। ट्रेन खचाखच भरी थी। अंदर से लेकर बाहर तक लोग लदे हुए थे। जिसे सीट नहीं मिल सका, वो ट्रेन के दरवाजों, खिड़कियों पर लटका हुआ था। इंजन के आगे-पीछे लोग बैठे हुए थे। ट्रेनों की छतों पर लोग किसी तरह बैठकर सफर कर रहे थे।

​आंधी-बारिश ने सब खत्म कर दिया​

ट्रेन बदला स्टेशन से आगे बढ़ी ही थी कि आंधी-बारिश शुरू हो गई। आगे बागमती नदी थी। ट्रेन को पुल संख्या 51 से होकर गुजरना था। जबरदस्त बारिश हो रही थी। पटरियों पर फिसलन थी और सामने लबालब भरी बागमती नदी । ड्राइवर ने ट्रेन को पुल पर चढा दिया। कुछ ही मिनट हुए थे कि ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगा दी। ब्रेक मारते ही 9 में से 7 डिब्बे पुल तोड़कर नदी में समा गए। चीख-पुकार मचने लगी। नदीं में डूबे यात्री मदद की गुहार लगा रहे थे, लेकिन उस वक्त पुकार सुनने वाला कोई नहीं थी। भारी बारिश की वजह से राहत बचाव में घंटों की देरी हो गई । तब तक बहुत कुछ खत्म हो चुका था।

​800 लोगों की चली गई जान​

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे में करीब 300 लोगों की जान चली गई, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि मरने वालों की संख्या कम से कम 800 से 1000 थी। रेलवे के रिकॉर्ड में उस ट्रेन में 500 लोग ही सवार थे, लेकिन बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने पीटीआई से बात के दौरान बताया कि सवारियों की संख्या अधिक थी। नदी में समा गए लोगों की लाशों को निकालने में कई हफ्तों का वक्त लग गया। गोताखोर 286 लाशें ही निकाल पाए, कईयों का तो पता नहीं चल सका। ये रेल हादसा भारत का अब तक का सबसे बड़ा ट्रेन एक्सीडेंट है।

​क्यों हुई दुर्घटना​

इस रेल हादसे को लेकर कई थ्योरी सामने आई। कुछ में कहा गया कि रेल ट्रैक पर गाय-भैस का झुंड आने की वजह से ड्राइवर को इमरजेंसी ब्रेक लगाना पड़ा। कुछ में कहा गया कि आंधी और बारिश की वजह से लोगों ने ट्रेन की सभी खिड़कियों को बंद कर दिया था, जिसके कारण तेज तूफान होने की वजह से पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और बोगियां पूल तोड़कर नहीं में गिर गई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here