हाय!चुनाव की मजबूरी ;वर्ना जनता जूती की नोंक पर भी भारी

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अटल राग
~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

रैगाँव उपचुनाव की सुगबुगाहट के बीच भाजपा और कांग्रेस अपनी चाल के मोहरों को चुनावी बिसात में बिछाने के लिए जद्दोजहद करने पर जुटी हुई हैं। जहाँ प्रत्याशी के पत्ते खोलने पर दोंनों पार्टियाँ एक-दूसरे की भौंहें ताक रही हैं। वहीं रैगाँव के गली-कोने में नेताओं की धमक का तूफान बवण्डर बनकर रैगाँव विधानसभा की जनता की आँखों में सपनों का जाल बुनने पर लगे हुए हैं। अपने आपको प्रत्याशी के तौर पर प्रोजेक्ट करने वाले नेता और नेत्रियाँ वेल अप टू डेट होकर आए दिनों जनसमस्याओं को सुनने और निराकारण का शिगूफा छोड़ने पर कोई कसर नहीं छोड़ने वाले हैं। चुनाव के मद्देनजर जनता भी थोड़ी चालाक हो गई है,इसलिए वह भी इस मौके को भुनाने में लगी है। हालाँकि जनता भले कामयाब न हो पाए लेकिन नेता अवश्य ही कामयाब होंगे।

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वी.डी.शर्मा, युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष वैभव पवार व स्वयं मुख्यमन्त्री शिवराजसिंह सहित मन्त्रियों का जमघट रैगाँव विधानसभा में लगने लगा,तो वहीं कांग्रेस के जिले की टीम भी अपने आपको एक्शन मोड पर दिखाने का भरसक प्रयास कर रही है। दो हजार अठारह के विधानसभा चुनाव के बाद से कुम्भकर्णी निद्रा में सोई हुई भाजपा व कांग्रेस को जुगल किशोर बागरी के निधन के बाद से ही अचानक ही रैगाँव विधानसभा के कायाकल्प का भूत सवार हो चुका है।

 

कांग्रेस जहाँ बिजली-सड़क,रोजगार सहित अन्य मुद्दों पर भाजपा सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है,वहीं भाजपाई मन्त्रियों से लेकर पदाधिकारी; प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से रैगाँव की जनता को सन्तुष्ट करने के विविध प्रयोजन-आयोजन करने पर जुटी हुई हैं। सरकार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आदेश है कि चुनाव तक रैगाँव के मतदाताओं के नखरों को उठाइए और उन्हें भाजपा के पक्ष में मतदान करने के लिए सहमत कीजिए,बाकी चुनाव के बाद कहाँ की जनता-कहाँ नेता और कहाँ अधिकारी।

 

जैसे स्वर्ग सीधे धरती पर उतर आएगा :―

कल शिवराज सिंह चौहान रैगाँव विधानसभा में ‘जनदर्शन’ के लिए कूच करने आए थे,जहाँ उन्होंने कई सौ करोड़ की घोषणाएँ कर आगामी चुनाव को अपने पाले में करने के लिए भरसक प्रयत्न करते नजर आए। जनता की कभी सुधि न लेने वाले नौकरशाहों से लेकर छोटे स्तर तक के सभी कर्मचारी-अधिकारी अपनी कर्त्तव्य निष्ठा का परिचय देते रहे।

 

मुख्यमन्त्री के मंच पर कलेक्टर और जिले के सभी अधिकारी उनकी हाँ-हाँ में हाँ मिलाते हुए दिखे और भाव-मुद्रा देखकर ऐसा लग रहा था,जैसे स्वर्ग सीधे धरती पर उतर आएगा। गाँव की गलियों-गलियों में जिन्दाबाद के नारे और भाजपाई नेताओं द्वारा चाटुकारिता के पर्याप्त प्रबन्ध किए गए थे।

 

शिवराज ने रैगाँव विधानसभा में सवर्णों की संख्या को देखते हुने ‘सामान्य वर्ग आयोग’ के गठन की घोषणा भी कर दी है। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि यह आयोग केवल चुनाव जीतने की रणनीति और पिछले कार्यकाल की तरह ही धूल-फाँकती घोषणाओं तक ही सीमित रह जाता है,याकि संवैधानिक मान्यता भी प्राप्त कर
पाएगा।

हालाँकि शिवराज सिंह चौहान ‘घोषणावीर’ मुख्यमन्त्री के रुप में भी जाने जाते हैं,इसलिए उनकी घोषणाओं पर जनता उस समय खुशफहमी भले पाल ले ,लेकिन बाद में जनता को सच्चाई समझ ही आ जाती है।

चित्रकूट उपचुनाव की कोरी घोषणाओं -वादाखिलाफी ने फिर से जख्मों को हरा कर दिया है :―

जनता में चित्रकूट उपचुनाव की कोरी घोषणाओं -वादाखिलाफी ने फिर से जख्मों को हरा कर दिया है। मामलख सन् दो हजार सत्रह के चित्रकूट उपचुनाव का है। जब प्रेम सिंह के निधन पर खाली हुई चित्रकूट विधानसभा सीट में उपचुनाव हुआ था,जहाँ मुख्यमन्त्री ने हजारों घोषणाएँ की और अन्तोगत्वा जब भाजपा को पराजय हाथ लगी तो भाजपा व उसके नेता उसे भूल गए ।

चित्रकूट विधानसभा की ग्राम पंचायत रिमारी में ‘उपचुनाव बहिस्कार’ को मुख्यमंत्री और तत्कालीन भाजपा के प्रदेश महामन्त्री और वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने काफी मानमनौव्वल के बाद खत्म करवाया।
और रिमारी की जनता की माँगों को पूरा करने की घोषणा तथा वादा करके चले गए उसके बाद फिर भाजपाइयों और मुख्यमन्त्री ने रिमारी को छलकर सत्ता का सुख भोगने में लिप्त रहे,मगर कभी सुध नहीं ली।

 

सूत्रों की मानें तो इस बार रैगाँव उपचुनाव में भाजपा व मुख्यमन्त्री की वादा खिलाफी के विरोध में ग्राम पंचायत रिमारी के युवाओं ने मुहिम छेड़ने का मन बना लिया है।

चित्रकूट उपचुनाव 2017 के दौरान ग्राम पंचायत रिमारी में उपचुनाव बहिस्कार खत्म करवाने और माँगोंं को मानते हुए घोषणा करते मुख्यमन्त्री शिवराजसिंह चौहान। साथ में सांसद गणेश सिंह,उपचुनाव प्रत्याशी शंकरदयाल त्रिपाठी, पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह गहरवार इत्यादि।
राजनीति चमकाने का इससे सशक्त माध्यम और क्या हो सकता है :―

वहीं शिवराज के आने की सूचना के साथ कांग्रेसी भी इस अवसर को अपनी राजनीति चमकाने से नहीं चूकने वाले थे,सो इसलिए विधिवत प्रेस विज्ञप्ति जारी कर व सोशल मीडिया में काले झण्डे दिखाने का बिगुल फूँक दिया।

वैसे कांग्रेसियों को मुद्दों व काले झण्डे दिखाने की चिन्ता नहीं थी, वे सभी अपने घरों में तैयार होकर सिर्फ़ इसलिए बैठे थे कि कब पुलिस उनकी गिरफ्तारी करने आए और वे अपनी फोटू खींचकर इसे अन्याय और जुल्म बताकर सोशल मीडिया और मीडिया में सुर्खियाँ बटोर सके।

वाकई अपनी राजनीति चमकाने का इससे सशक्त माध्यम और क्या हो सकता है? और जिन्हें विरोध करना और काला झण्डा वास्तव में ही दिखाना होता,वे यह सब प्रपञ्च ही नहीं रचते।

आन्दोलन की विचारधारा को मौत के घाट उतारकर अपना उल्लू सीधा कर लिया :―

कुछ नए-नवेले कांग्रेसियों की उत्सुकता भी अपने चरम पर देखी जा रही है। इनका बैकग्राउण्ड ‘एट्रोसिटी एक्ट विरोध’ के आन्दोलन से शुरु हुआ और उसका इन्होंने दुरुपयोग करने में कोई कमीं नहीं की और अपने को नेता बनाने के चक्कर में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की सत्ता में अपना भविष्य भाँपते हुए सीधे कांग्रेसी कुनबे में शामिल होकर जयकारे लगाने में जुट गए। इन्होंने आन्दोलन की विचारधारा को मौत के घाट उतारकर अपना उल्लू सीधा कर लिया,और नेता-नेत्री बनकर फूले नहीं समा रहे। इस कारण से ‘एट्रोसिटी एक्ट विरोध’ के दौरान भाजपा द्वारा इसे कांग्रेस प्रायोजित का ठप्पा भी चरितार्थ हो गया।

उपचुनाव के मौके में ‘गदहे को भी बाप’ बना लेने की कहावत :―

राजनैतिक महकमे में इस बात की भी चर्चा है कि नवेले व पुराने ऐसे कई सारे कांग्रेसी हैं,जो शिवराज व भाजपा विरोध की रणनीति के तहत आगे भाजपा में शामिल होने की फिराक में हैं। उपचुनाव के मौके में ‘गदहे को भी बाप’ बना लेने की कहावत को राजनैतिक पार्टियाँ चरितार्थ करती हुई नजर आती हैं,और उपचुनावों में तो थोड़ा विरोध करो फिर शामिल होकर भरपूर ईनाम पाओ योजना खूब फलती-फूलती है । ऐसे में कांग्रेसियों की भाजपा में इण्ट्री पाने की इस मंशा व सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

मामला यहाँ सरकारी खजाने और तन्त्र के दुरुपयोग का भी है। क्योंकि शिवराज का कल रैगाँव के विभिन्न जगहों पर आयोजित हुए कार्यक्रम का व्यय सरकारी खजाने से किया जाएगा, जो कि आयकरदाताओं की गाढ़ी कमाई से जमा हुआ था।
ऐसे में जब यह कार्यक्रम विशुद्ध चुनावी प्रचार है,तब इसे योजना का हितलाभ बाँटने का भ्रम फैलाकर सरकारी तन्त्र व सरकारी खजाने का पार्टी प्रचार में प्रयोग करना राजनैतिक अपराध व जनता के पैसे का आर्थिक गबन नहीं है तो क्या है? लेकिन न तो यह सवाल कहीं गूँजता है ,और न ही इसका कहीं से भी जवाब मिल पाएगा

 

भाजपा रैगाँव की अपनी इस परम्परागत सीट को बचाने के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति में नजर आती है,वहीं कांग्रेस अभी कमलनाथ-अजय सिंह राहुल की अन्तर्कलह के बीच जूझती हुई पशोपेश में नजर आ रही है।

फिर भी गाहे-बगाहे रैगाँव के स्थानीय दावेदार अपने-अपने स्तर पर लगे हुए हैं,मगर जिले की कांग्रेस अभी भी अपने-अपने गुटों के आकाओं के आदेश की प्रतीक्षा में है।

चुनावी लुत्फ़ का मेला व नशा नेताओं तथा जनता के सर पर चढ़ा हुआ है :―

खैर,रैगाँव उपचुनाव की आधिकारिक घोषणा और सरगर्मी के साथ यह पता चलेगा कि ऊँट किस करवट बैठा है,मगर तब तक चुनावी लुत्फ़ का मेला व नशा नेताओं तथा जनता के सर पर चढ़ा हुआ है।

मुख्य सवाल यह भी है कि जहाँ उपचुनाव नहीं होने हैं,क्या वहाँ जनसमस्याएँ नहीं हैं? क्या सभी जगह विकास ने इतना विकास किया है कि वहाँ अब मुख्यमन्त्री, पक्ष-विपक्ष की नजरें चमचमाती रौशनी में चौंधिया जाने के कारण ; वे उधर जनदर्शन या प्रदर्शन के लिए जा ही नहीं पा! रहे। कुलमिलाकर बात इतनी सी! है कि यह तो चुनाव की मजबूरी है जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष जनता के पैरों में नाक रगड़ रहे हैं,अन्यथा यह जनता तो नेताओं व पार्टियों की जूती की नोंक पर भी भारी और उन्हें एक प्रकार की महामारी ही समझ आती है!!

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

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