भुवनेश्वर: बालासोर ट्रेन हादसे के पास एक स्कूल में लाशों के ढेर लगे थे। इन लाशों के बीच एक शख्स किसी को तलाश रहा था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। सफेद चादरों से ढकी हर एक लाश का चेहरा खोलकर देखने के बाद वह बंद कर देता। यह शख्स बदहवाश था। चीख रहा था। कुछ लाशों के चेहरे इतने खराब थे कि उन्हें देखकर अपनी आंखें बंद कर लेते और फिर अगली लाश की ओर बढ़ जाते। ट्रेन हादसे के बाद आधी रात लाशों के ढेर के बीच पहुंचे यह शख्स दोपहर तक यही करते रहे। कुछ लोगों ने पूछा तो पता चला कि वह अपने बेटे को ढूंढ रहे हैं, जिसका कोरोमंडल ट्रेन हादसे के बाद से कुछ पता नहीं चल रहा था।
टुकड़ों में तलाशे बेटे के निशां
रवींद्र ने बताया कि उन्हें उसके बाद कुछ होश नहीं, कुछ मिनटों के लिए अंधेरा छा गया और उनका दिमाग सुन्न हो गया। जब होश आया तो सब तबाह हो चुका था। हर तरफ लाशें और शवों के टुकड़े पड़े थे। वह अपने बेटे को इन लाशों के टुकड़ों में ढूंढने लगे। कटे सर से लेकर धड़ों को वह गौर से देख रहे थे। किसी का कटा हाथ दिख जाता या पैर उसे भी गौर से देखते कि कहीं उनके बेटे के शरीर का कोई अंग तो नहीं। आधी रात तक वह बदहवाश ऐसे ही बेटे को खोजते रहे। उसके बाद वहां पहुंच गए जहां शवों का ढेर रखा गया था।