जावेद अख्तर की जिंदगी का ‘जादूनामा’ लॉन्च:इसमें सूरमा भोपाली से लेकर एंग्री यंग मैन गढ़ने के किस्से

214
0

दिल्ली में चल रहे उर्दू के सबसे बड़े मेले ‘जश्न-ए-रेख्ता’ में उर्दू अदब की शख्सियत जावेद अख्तर जब एक किताब पलटा रहे थे तब उनकी जुबान से लेखक के लिए निकला, ‘आपने तो कमाल कर दिया, ये फोटो तो मेरे खुद के पास नहीं हैं, आपने कहां से जुटा लिए। मुझ जैसे व्यक्ति पर आपने इतनी मेहनत कर दी, किसी दूसरे पर करते तो पीएचडी मिल जाती।’

ये किताब थी जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी ‘जादूनामा’। इसके लेखक अरविंद मण्डलोई हैं और इसका प्रकाशन मंजुल पब्लिकेशंस ने किया है। ये किताब जादू से जावेद बनने के किस्सों और दास्तानों को समेटे हुए है। जादू जावेद अख्तर का निकनेम है। करीब 450 पन्ने की इस किताब के कई ऐसे पहलू हैं, जो अमूमन लोगों को पता नहीं हैं। जब जावेद साहब ने पहली बार किताब देखी तो उनका चेहरा खिल उठा।

इस किताब की लॉन्चिंग के मौके पर जैसे ही जावेद अख्तर का नाम लिया गया हजारों की जनता का शोर गूंजने लगा। जावेद साहब हमेशा की तरह कुर्ता पायजामा पहने, आदाब-आदाब करते हुए चले आए। विमोचन कार्यक्रम की शुरुआत में जावेद अख्तर की शख्सियत और किताब की विशेषताओं के बारे में बताया गया।

भोपाल में 56 साल पहले जिस जगह से अंग्रेजी की ख्वाजा अहमद अब्बास की किताब ‘इंकलाब’ खरीदी थी, उसी लॉयल बुक डिपो के मंजुल प्रकाशन ने आज मुझ पर किताब छापी है। हंसते हुए बोले ‘पुराना इन्वेस्टमेंट आज काम आया।’

इस दौरान किताब पर चर्चा और अपने अतीत को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ‘वो एक बार जब मुंबई में कोहिनूर मिल्स के सामने से बेटी जोया के साथ गुजरे तो उससे उन्होंने कहा कि संघर्ष के दिनों में एक बार उन्होंने यहां से 20 पैसे के चने खरीदे थे और 8 मील पैदल चलकर यहां से गुजरे थे। उन्हें उम्मीद थी कि बेटी शायद इमोशनल हो जाएगी, लेकिन जोया ने कहा, ‘तब तो 20 पैसे में बहुत चने आ जाते होंगे।’ ये किस्सा पूरा होते ही मजमा ठहाके लगाने लगा। फिर वो बोले कि मेरी बेटी जोया का सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का है।

माहौल संजीदा होने पर जावेद साहब ने कहा कि दुनिया में भूख से बड़ी कोई तकलीफ नहीं होती, इसके आगे सब बेमानी है। जब वो ये कह रहे थे तो मजमे में से एक लड़की ने खड़े होकर ‘वक्त’ गजल की फरमाइश कर दी। तो वो बोले ‘कोई इन्हें बता दो कि क्या टाइम हुआ है।’ जावेद साहब के सटीक सेंस ऑफ ह्यूमर ने भीड़ को कायल कर दिया। इस मौके पर जावेद अख्तर मंजुल पब्लिकेशन के विकास रखेजा को मुबारकबाद देना नहीं भूले।

‘शायरी संजीदगी और तसल्ली से होती है’
‘तरकश’ और ‘लावा’ नाम की दो किताबों के बाद कोई नई किताब नहीं आने के सवाल पर जावेद अख्तर बोले कि कमर्शियल फिल्में तो ऑडियंस की पसंद को ध्यान में रखकर बनती है, जबकि शायरी संजीदगी और तसल्ली से होती है। कोई ख्याल ऐसा हो जो पूरा और अनोखा हो, तभी मैं लिख पाता हूं, वर्ना नहीं लिखता।

लेखक मण्डलोई ने बताया सलीम-जावेद की जोड़ी का राज
‘जादूनामा’ के लेखक मण्डलोई ने बताया कि किताब के दौरान जब उन्होंने जीपी सिप्पी से बात की तो उन्होंने सलीम-जावेद की जोड़ी का एक राज खोला। उन्होंने कहा, ‘शोले के डायलॉग जावेद अख्तर साहब ने लिखे थे, बाकी फिल्मों में भी उन्होंने ही डॉयलॉग लिखे।’ जादूनामा शीर्षक को लेकर उन्होंने बताया कि जावेद साहब का निकनेम जादू है, इसलिए जिंदगी के हिस्से समेटने वाली किताब का नाम ‘जादूनामा’ रखना तय किया।

जादूनामा के जादुई किस्से

जादू नाम पड़ने का राज सुनिए…
जावेद अख्तर पर लिखी गई किताब में जावेद साहब का जादू नाम पड़ने का राज खोला गया है। उनके पिता जां निसार अख्तर की जब शादी हुई थी, तब उन्होंने जादू नाम से एक नज्म कही थी। जिसकी लाइन थी, ‘लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा’। जावेद के जन्म के समय जां निसार को यह नज्म याद दिलाते हुए कहा कि क्यों न बच्चे का नाम जादू रखा जाए। इस तरह उनका निकनेम जादू पड़ गया। जावेद का मतलब है ‘अमर’ और अख्तर का मतलब है ‘सितारा’ दोनों शब्दों को मिलाकर हुआ ‘अमर सितारा’।

सैफिया कॉलेज का वो खाली कमरा
भोपाल के सैफिया कॉलेज का जिक्र किताब में है। वे कहते हैं कि मैं इस कॉलेज का ऐसा स्टूडेंट था, जिससे कभी फीस नहीं ली गई। यह शायद भोपाल में ही संभव था। क्लास खत्म होने के बाद मैं खाली कमरे में अपना बिस्तर जमा लेता, होटलों में उधार खाता, कॉलेज के कुछ दोस्त मेरे लिए टिफिन लाते। उन्हें एहसास ही नहीं होता था कि उनके जाने के बाद मैं बहुत रोता हूं कि ये मेरा कितना ख्याल रखने वाले दोस्त हैं। उन्होंने भोपाल की यादों में वहाजुद्दीन अंसारी, एजाज अंसारी, फतेउल्लाह, एहसान मुल्ला, मन्नान भाई का जिक्र किया है। किताब में भोपाल के सफर पर बकायदा एक पूरा चैप्टर है।

मुंबई आने पर जेब में 27 पैसे थे तो मैं खुश था
4 अक्टूबर 1964 को भोपाल छोड़कर मुंबई पहुंच गया। यहां 6 दिन बाद ही वालिद का घर छोड़ना पड़ा, तब जेब में 27 पैसे थे। मैं खुश था कि जिंदगी में कभी 28 पैसे भी जेब में आएंगे तो मैं फायदे में रहूंगा। यहां फिल्मी दुनिया में कदम जमाने के लिए एक लंबा किस्सा शुरू हुआ। ​​​​​​

फिल्म के सेट पर हुई थी हनी ईरानी से मुलाकात
सीता-गीता के फिल्म के सेट पर मुलाकात हनी ईरानी से हुई। बाद में शादी कर ली। कुछ अरसे बाद तलाक हो गया, लेकिन हमारी दोस्ती कोई नहीं बिगाड़ सका, ना ही हमारा रिश्ता टूटना बच्चों में कड़वाहट ला सका। इस कमाल का श्रेय हनी ईरानी को जाता है।

एंग्री यंग मैन का कैरेक्टर बिरजू से निकला था
मदर इंडिया के बिरजू से प्रेरित होकर एंग्री यंग मैन कैरेक्टर के बारे में सोचा। इसे बाद में फिल्मों में खूब इस्तेमाल किया गया और सक्सेसफुल फिल्म का फॉर्मूला बन गया।

निहार सिंह से आया था सूरमा भोपाली कैरेक्टेर का आइडिया
किताब में बताया गया है कि शोले फिल्म के लिए सूरमा भोपाली का किरदार निहार सिंह से प्रेरित था। निहार सिंह खुद को बहुत बड़ा दादा समझते थे। उनके दोस्त भी उन्हें हमेशा यही एहसास कराते रहते थे। किसी ने कहा कि तुम्हारे नाम से जावेद मुंबई में बहुत पैसे कमा रहा है। इसे लेकर उन्होंने कानूनी कार्रवाई तक शुरू कर दी। अखबार में विज्ञापन दिया। इसी बीच फिल्म दीवार रिलीज हो गई। निहार यह फिल्म सिर्फ इसलिए देखने गए कि कहीं इसमें उनका नाम तो नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here