कशीर उपन्यास : काश्मीर में उपजे नरसंहार और आतंकवादी त्रासदियों का बेबाक दस्तावेज

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कशीर उपन्यास : काश्मीर में उपजे नरसंहार और आतंकवादी त्रासदियों का बेबाक दस्तावेज

सतना | साहित्य अकादमी भोपाल के उपक्रम पाठक मंच सतना का पुस्तक विमर्श पाँच दिसम्बर को ध्येय अकादमी में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर सहना विजय कुमार कृत उपन्यास कशीर की समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकार चिंतामणि मिश्र ने प्रस्तुत की । इस विमर्श की अध्यक्षता गोरखनाथ अग्रवाल और अतिथि के रूप में समाजसेवी और साहित्यकार राजेश सेन रहे।


समीक्षा प्रस्तुत करते हुए चिंतामणि मिश्र ने कहा कि – सहना विजयकुमार का उपन्यास कशीर समकालीन काश्मीर के परिदृश्य को बड़ी गहराई से उकेरने का ईमानदाराना प्रयास है। भारत की आजादी के साथ ही काश्मीर का कैंसर भारत को साथ -साथ मिला और स्वर्ग समान इस प्रदेश की मुस्लिम बहुल घाटी मजहब का नकाब पहने जिहादियों के जुनून का शिकार हो कर लहुलुहान हो गई। अभी भी वहाँ आतंकवाद फैला हुआ है और निरपराध की हत्याएँ हो रही हैं। काश्मीर में जहाँ इस्लाम हमले कर रहा हो और पाक-परस्त राजनीति दिल्ली से भिड़ रही हो ; वहां का प्रशासन जिहादियों की सरपरस्ती करने में लगा हो तो वहां के गैर मुस्लिम विशेषतया हिन्दुओं के पास मौत, जबरिया धर्मान्तरण, बलात्कार, आगजनी या पलायन में से एक ही विकल्प चुनने की अनिवार्यता बनती है।

चर्चा में भाग लेते हुए कैलाश यादव ने कहा इस उपन्यास में काश्मीरी हिंदुओं की दुर्दशा का वर्णन किया गया है तथा मुसलमानो की कौम से लिए व्यवहार कुशल पात्रों को भी स्थान मिला है। राजेश सेन ने कहा कशीर का अर्थ ही है काश्मीरी तहजीब की व्याख्या करना, इस तरह के ग्रंथ काश्मीर की दशा और दिशा को लोगों के सामने लाते हैं। हालाँकि काश्मीर समस्या में राजनैतिक हस्ताक्षेप होने के बावजूद भी देर से हल निकला।

रचना त्रिपाठी ने कहा कि – इस उपन्यास की गति बहुत धीमी है, कथा बहुत मार्मिक है, इसे तेजी से पाठको तक पहुचना चाहिये विस्तार से बचना चाहिये।

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल ने कहा कि यह उपन्यास जम्मू काश्मीर में मुसलमान आतताइयों, आतंकवादियों की बर्बरता का खुला चिट्ठा है। गोरखनाथ अग्रवाल ने कहा कि इसके पहले भी भैरप्पा जी के कई पुस्तकें पाठक मंच में आई हैं जो हिन्दू मुस्लिम धर्मांतरण, हिंसा इसी तरह के मुद्दों पर आधारित थी। यह उपन्यास भी उसी तारतम्य में आज हमारे सामने है। इसमें भी काश्मीर में आतंकी बर्बरता, नायकों और खलनायकों के बीच के गतिरोध का दुर्दांत अंत दिखाया गया है। संयोजक अनिल अयान ने सभी साहित्यकार वृंद और साहित्यनुरागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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