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जनक सुता : जगज्जननी

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जनक सुता : जगज्जननी 

~मुदित अग्रवाल

यह जनकसुता कौन हैं, जिस अग्नि की उपासना करते करते द्विजों का देह स्वेद से तर हो गया है और राजाओं के कोष दान में चले गए हैं, और जिसमें संसार की गायों का सारा घृत होम हो गया है, उसका क्या प्रयोजन है, वेद कहते हैं इन सीताजी का प्राकट्य ही इसका प्रयोजन है, क्योंकि यही भगवती श्रुतिमाता हैं जो मन्त्र रूप में यज्ञमण्डप में आई हैं और द्विजों को पवित्र करने वाली हैं, आयु प्राण प्रजा पशु कीर्ति द्रविण ब्रह्मवर्चस् प्रदान कराने वाली हैं और ब्रह्मलोक में पहुँचाने वाली हैं, यही राजाओं की धन वैभव साम्राज्य आदि राज्यलक्ष्मी हैं जो उनके कोष में अक्षय धन बनकर रहती हैं और स्वयं ही दान बनकर दानियों का पुण्य बनती हैं। गाय और गायों की दुग्ध घृत यही हैं, समस्त शुभ्र वस्तुओं के रूप में संसार को पुनातु करने वाली यह सीताजी ही हैं।

भगवान् श्रीरामचन्द्र जी ने श्रीसूक्त का गान करके उन्हें अग्नि से प्राप्त किया है। क्योंकि सीता तो अग्निदेव के यहाँ थीं, और रावण मात्र छायासीता का अपहरण कर सका था। तब रावणवध के पश्चात् रामचन्द्रजी प्रार्थना करते हैं कि,

“अग्नि के समान स्वर्ण वर्ण की हरिणी जैसी आँखों वाली और मुझ हरि की होने से जो हरिणी है और हिरणी के समान नेत्रों वाली होने से स्वयं हरिणी हैं और स्वर्णवर्णा होने से हिरण्मयी भी हैं तब भी मेरी लीला पूर्ण हो इसलिए कृत्रिम स्वर्णमय हिरण पर मोहित होने का आडंबर करती हैं, सोने चाँदी के हार पहनने वाली चन्द्र जैसी शीतल और अग्नि जैसी प्रज्ज्वल लक्ष्मी सीता को हे जातवेद अग्नि मेरे सामने प्रकट करो।

 

हे जातवेद अग्नि तुम उन सीताजी को मेरे सामने प्रगट करो जो वन में भी मेरे पीछे पीछे चली हैं और जिनके पाँवों में चुभे काँटे मैंने अपने हाथों से निकाले हैं, इस प्रकार जिन लक्ष्मी की पूर्वकाल में मैंने वन्दना की है उन्हीं को प्राप्त करके मैं पुनः राज्य गौ अश्वों और प्रजा से परिपूर्ण हो जाऊंगा।

अनेक घोड़ों के रथ पर सवार होकर युद्धक्षेत्र के मध्य में चलने वाली वो वीरांगना सीताजी हाथियों के चिंघाड़ने से द्रवित हो जाती हैं उन कोमल हृदय वाली श्रीदेवी सीता का आवाहन करता हूँ वे मुझ पर प्रसन्न हों।

कां? तुम अगोचर परमेश्वरी को कौन पूर्णतः जानता है? “ईशद्धासां” बहुत मन्द मुस्काने वाली, स्वर्णभवन की निवासिनी, समुद्र से प्रकट होने और हाथियों द्वारा स्नान कराने से आर्द्र देह वाली, व अग्नि के समान जाज्ज्वल्यमान, स्वयं तृप्त और सबको तृप्त करने वाली, कमल पर बैठी हुई, और कमल जैसे हल्के गुलाबी रंग वाली श्रीदेवी सीता आओ तुम्हें मैं राम बुला रहा हूँ। चन्द्र की बहन होने से उसके जैसी प्रकाशवान, यश से दीप्त, सभी लोकों और देवताओं द्वारा पूजी जाने वाली श्रीदेवी सीता तुम कितनी उदार हो! तुम पद्मिनी की मैं शरण ग्रहण कर रहा हूँ, अब मेरी इस वनवास रूप अलक्ष्मी को तुम दूर कर दो।

आदित्यवर्ण वाली भूमिरूप सीता तुम्हारे तप से वनस्पतियों और वृक्षों में सर्वश्रेष्ठ बिल्व का प्राकट्य हुआ है। तप के द्वारा वह बिल्वफल हमें प्राप्त हुआ है जो हमारे अन्दर व बाहर की अलक्ष्मी को दूर कर देता है। क्योंकि इस बिल्वपत्र के तीन सुपर्ण तीन वेदों, तीन गुणों, त्रिलोक, त्रिदेव और त्रिशक्ति के रूप हैं। बिल्वपत्रों के बिना पूजा की हुई या न की हुई एक समान ही है अर्थात् साधन को पूर्ण करने वाला बिल्व तुम बिल्वेशी ने ही हमारे कल्याण हेतु उत्पन्न किया है। जब तुम अपहृत हो गईं थीं तब इसी बिल्ववृक्ष से मैंने पूछा था कि हे बिल्व क्या तुमने तुम्हारे पत्तों के समान स्निग्ध सुकोमल, पीले वस्त्र पहनी हुई एक स्त्री को देखा है जिसके वक्षस्थल तुम्हारे फलों के समान हैं? संसार का पुत्रवत पालन करने वाली माता सीता को प्रणाम है।

भगवान् रामचन्द्रजी फिर कहते हैं, हे भगवती सीता, मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ और इक्ष्वाकुवंशी होने से आसमुद्रसमुद्रपर्यन्ताया एकराट् पृथिवी का पालक हूँ यह तुम्हारी ही इच्छा से है, अब इसके पालन रक्षण हेतु मुझे कीर्ति, चिन्तामणि व रत्नों के देवता कुबेर की प्राप्ति कराओ।

मैं मेरे राष्ट्र से भूख प्यास व समस्त अपवित्रता करने वाली बड़ी अलक्ष्मी का नाश चाहता हूँ। इतने वर्षों से पृथ्वी पर राक्षसों की प्रबलता से भयंकर अधर्म का राज्य फैल गया है, जहाँ देखो वहाँ विनाश ही नजर आता है। अब रामराज्य में इस समस्त दुष्कृत का निवारण तुम्हारी कृपा से कर दूंगा। मेरे इस राष्ट्र के समस्त अनैश्वर्य, असमृद्धि और अधर्म को दूर करो देवी!

तुम भूमिपुत्री होने सुगन्धित हो, कठोर साधन से प्राप्त होती हो, 14 वर्षों से भूमण्डल का भार उतारने हेतु वनवासी होकर साधना कर रहा हूँ, अब मुझे व इस चिरन्तन पृथिवी को हर प्रकार से पुष्ट करो! हे सर्वभूतों की ईश्वरी श्रीदेवी सीता, मैं तुम्हारा आवाहन कर रहा हूँ।

मेरे मन की कामनाओं, बुद्धि के संकल्प, वाणी की प्रार्थनाओं, राष्ट्र की जीवधन, अन्नधन समृद्धि को सुस्थिर व सफल करके मुझे यश दो, ऐसी प्रार्थना है।

हे कर्दम प्रजापते आपकी कन्या लक्ष्मीरूप जनकनन्दिनी सीताजी को जिन्होंने पद्ममाला पहनी हुई है, मेरे कुल व राष्ट्र में स्थापित करें।

हे चिक्लीत! घी आदि स्निग्ध चिकने पदार्थों से मेरा घर व राष्ट्र भरा रहे, आप मेरे घर यानि जो राष्ट्ररूप मेरा घर है उसमें निवास करें और श्रीलक्ष्मी माता को मेरे घर निवास करावें। इस राष्ट्र की माता यही हैं।

हे जातवेद अग्निदेव! पुष्टिरूपा, कमलवासिनी, आर्द्र हृदया, चन्द्र के जैसी कान्ति वाली व चाँदी के वर्ण वाली, कमलों की माला पहनी हुई, स्वर्णमयी भगवती श्रीसीता को मेरे अभिमुख कीजिए।

हे जातवेद अग्निदेव! यज्ञरूपा, कमलवासिनी, आर्द्र हृदया, सूर्य जैसी कान्ति वाली व स्वर्ण के वर्ण वाली, स्वर्णपुष्पों की माला पहनी हुई, स्वर्णमयी भगबति श्रीसीता को मेरे अभिमुख कीजिए।

हे जातवेद अग्निदेव! आपको बुलाता हूँ, आप उन सीता को प्रगट कीजिए जो मेरे पीछे पीछे वन में चली हैं, अब उन्हें पुनः पाकर मैं और मेरा राष्ट्र अपार स्वर्ण, धन संपत्ति, पशुधन, कार्मिकों, अश्व, हाथी आदि वाहनों, पुत्र पौत्र और प्रजा से सम्पन्न हो जाऊँगा।

भगवती सीता जी की ऐसी आराधना करने पर अग्नि से सीतादेवी प्रकट हुईं और श्रीराघवेन्द्र सरकार को प्राप्त हुईं। ऐसी परमप्रतापिनी सीताजी अपने साम्राज्यगुण को बहिरंग रूप से छिपाए हुए रखती हैं क्योंकि अंतरंग रूप से इन समस्त गुणों सहित वह श्रीराम में स्थित हैं। रामायण में भगवती सीताजी अपने सौम्यतम रूप में प्रकट हुईं। “सौम्या सौम्यतरा शेषा सौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी।”

रामायण में सीताजी का जो महान आदर्श प्रकट हुआ है उसपर स्वामी विवेकानन्द लिखते हैं –

भारतीय नारियों से सीता के चरण चिन्हों का अनुसरण कराकर अपनी उन्नति की चेष्टा करनी होगी, यही एकमात्र पथ है। भारतीय स्त्रियों को जैसा होना चाहिए, सीता उनके लिए आदर्श हैं। स्त्री चरित्र के जितने भारतीय आदर्श हैं, वे सब सीता के ही चरित्र से उत्पन्न हुए हैं।

सीता पवित्र थीं, यह कहना ईश-निन्दा है, वह तो स्वयं साकार पवित्रता थीं – सुंदरतम चरित्र, जो कभी पृथ्वी पर हुआ। “पवित्र? वह तो सतीत्व (सीता) स्वरूप है”, राम ने कहा। भारत में उस प्रत्येक वस्तु को सीता नाम दिया जाता है, जो शुभ, निर्मल और पवित्र होती है। नारी में नारीत्व का जो गुण है, वह सीता है। भारतवर्ष में जो कुछ पवित्र है, विशुद्ध है, जो कुछ पावन है, उस सब का ‘सीता’ शब्द से बोध हो जाता है। नारी में जो नारीजनोचित गुण माने गए हैं, ‘सीता’ शब्द उन सबका परिचायक है।

एक भक्त को वैसा होना चाहिए, जैसे कि सीता राम के समक्ष थीं। वे हर प्रकार की कठिनाइयों में पड़ सकती थीं। सीता अपने दुःख की चिंता नहीं करती थीं, उन्होंने अपने को राम में केन्द्रीभूत कर दिया था। जिन्होंने अविचलित भाव से ऐसे महादुःख का जीवन व्यतीत किया, वही नित्य साध्वी, सदा शुद्धस्वरूप सीता, आदर्श पत्नी सीता, मनुष्यलोक की आदर्श, देवलोक की भी आदर्श नारी पुण्यचरित्र सीता सदा हमारी राष्ट्रिय देवी बनी रहेंगी। सीता भारतीय आदर्श – भारतीय भाव की प्रतिनिधि हैं, मूर्तिमती भारत माता हैं।

मेरा तो दृढ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को जन्म दिया – उस जाति में स्त्रीजाति के प्रति इतना सम्मान तथा श्रद्धा है कि उसकी तुलना संसार के अन्य किसी भाग से नहीं हो सकती। मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो, जब तक भारत के अतिशय ग्राम्यभाषा बोलने वाले पांच हिन्दू भी शेष रहेंगे, तब तक सीता की कथा विद्यमान रहेगी।

आज श्री जानकी नवमी पर श्रीजनकनन्दिनी सीताजी के प्राकट्योत्सव की हार्दिक बधाई। जय श्री सीताराम।

मुदित अग्रवाल

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